भाषा एवं साहित्य >> मुझे दिखा एक मनुष्य मुझे दिखा एक मनुष्यमंगलेश डबराल
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मुझे दिखा एक मनुष्य प्रत्येक मनुष्य को अपने भीतर की उस नमी को छूने की गुज़ारिश है जिसे भीषण दुख से आहत होकर हमने सम्पूर्ण संसार को निर्मम बना दिया है। संकलित कविताएँ उस तिरस्कार का प्रतिनिधित्व कर रही हैं जो कवि की नींद में रोज़ किसी दुःस्वप्न की तरह आते हैं। कविताएँ जो अपने उपजने के स्थान की तमाम पुरानी तस्वीरों में व्याप्त यथार्थ और छुपे झूठ की पड़ताल कर रही हैं वह सब कवि सौंप रहा है ताक़त की उस दुनिया को जिन्होंने युद्ध के बारे में ही जाना है। जो नहीं जानते उस नमी को जिसे कवि ने हर मनुष्य को छूने के लिए कहा है। यह कविताएँ उन सभी के लिए जो ज़्यादातर भीतर रहते हैं और उनके लिए भी जो ज़्यादातर बाहर रहते हैं।
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